Simran ( सिमरन )

परमेश्वर के पतित पावन नाम को वाणी से अथवा मन से जपना सिमरन कहा गया है।  यदि किसी अनुभवी मनुष्य द्वारा परमेश्वर का मंगलमय नाम लिया जायतो उस से अंतरात्मा जग जाता है और वह नाम वृतियों को मूर्छित करने में एक मोहन मन्त्र ही मानेगा गया है।  जैसे सजीव पेड को सजीव फल और बीज लगा करते है, ऐसे ही ईश्वर कृपा तथा अनुभवी सज्जन से ग्रहण किया हुआ नाम ही ध्यान, एकागर्ता, समता और समाधी का साधन बना करता है।

साधो प्रातः  सिमरिए,  परम  पुरुष   भगवान  ।
पालक   संतो  का  सदा, जो  है  प्रभु महान  ।।
है  नेता शुभ  कर्म   में,  शुभ  पथ  दर्शक  राम ।
भक्ति प्रेम से गाइए,  उस के  मिल गन  ग्राम ।।

नाम सिमरन करते हुए नाम ध्यान तथा नाम योग बहुत ही लाभदायक, शीघ्र सिद्धिकारी, अल्पकाल में सफलता का दाता तथा थोड़े प्रयत्न से ही आत्मा को जगा देने वाला, सुगम ध्यान और सहज योग है।  इस योग में साधक अपने परमेश्वर के समीप होता है।  वह उसी अनंत हरी का आह्वाहन करता है और समाधी काल में उसी में लेता लाभ कर लेता है।

सांझ  सबेरे   सिमरिये, मुद  मंगलमय नाम  ।
अन्तर्मुख  हो  धयाइए,  नारायण  श्री  राम ।।
हे  राम  मुझे दान  कर, अपना सिमरन आप ।
लगन प्रेम से में जपून, परम पुण्यमय जाप ।।