Bhakti

( भक्ती )

Bhakti, a movement emphasizing the mutual intense emotional attachment and love of a devotee toward Ram.

भक्ति करो भगवान की, तन्मय  हो  मन  लाय ।
श्रद्धा  प्रेम  उमंग  से,  भक्ति  भाव  में  आये  ।।
भक्ति  बीच भगवान  है, भक्तो  बीच  भगवान ।
भक्ति भाव में रहे हरी, यही  भक्ति का ज्ञान  ।।

स्वामीजी महाराज के ग्रंथों का जब हम गायन करते है तो वह गायन ऐसी संगीतमयी धारा है जिसमें बहकर साधक का मन सांसारिक विचार धाराओं से निकल कर आध्यात्मिक ऊंचाइयों को छूने लगता है, और जब हम उनमें लिखे शब्दों का अर्थ समझ कर गायन करते अवं सुनते है तो हम उस आनंदमयी अवस्था से  जुड़ जाते है जो की ईश्वरत्व का अनुभव करा देता है।

प्रतिपन्न   तव   शरण   में,  मैं   हूँ  मेरे  ईश ।
सुरस भक्ति में दे मुझे, भजूँ तुझे जगदीश  ।।
भक्ति  करूँ  तेरी सदा, हो कर  धुन में लीन ।
निर्भय पद तेरा मिले, बनु न जान का  दीन ।।

Music has the power to calm down some agitation of the present form of a person’s mind. Bhakti is that melodious stream in which the devotees’ mind merges and then rises above the current situations and gets connected with the Ram.  Sung in melodious tunes, these nicely interlaced words in accordant rhythms when get heard by us, then these songs open the door for us to uncover our knowledge. That is why SRS sings Amritvani, Bhakti Prakash path in melodious stream to get us connected to the ultimate Truth. At the heart of bhakti is surrender, it burns like a devotional fire in the heart.

Reverence ( श्रद्धा )

श्रत नाम सत्य का है। सत्य को धारण करने की भावना को, प्रीति को और रूचि को संत जन श्रद्धा कहा करते है। सत्य के निश्चय को भी श्रद्धा कहा गया है। मुनुष्य में आत्मा के लिए, परमात्मा के लिए, परलोक के लिए, दान पुण्य के फल के लिए सत्कर्मो के लिए और श्रेष्ठ जानो के लिए जो उत्तम धIरना, पवित्र प्रीति अटूट अनुराग और संशय रहित सुनिश्चय हुआ करता है। उस वृति का नाम श्रद्धा है। धर्म मार्ग में, आत्म पथ में, अभ्यास के साधनो में, सेवा-सत्कर्म में श्रद्धा ही काम किया करती है। इसके बिना तो धर्म-कर्म फीके हो जाते है। अध्यात्मवाद निरा आसार समझा जाता है और ज्ञान-ध्यान रस रहित पकवान सामान ही दिखने लगता है।

Trust ( विशवास )

विश्वास साधक का जीवन है। भगवान् के अस्तित्व में पूर्ण रूप से विशवास होना चाहिए। विश्वास मन बुद्धि को बल देता है, दृढ़ निश्चय रखते हुए मन्त्र का आराधन करने से बड़ा लाभ होता है। उसके अंदर शुभ भावो का संचार होता है। जितनी भावना और विश्वास बढ़ेगा उतना अधिक लाभ होगा। साधक को पूर्ण रूप से यह दृढ़ निश्चय होना चाहिए कि जाप से मेरा अन्तरात्मा को बल प्राप्त होगा और अपने भीतर के ईश्वरत्व का अनुभव होगा।